अक्षय तृतीया के दिन सर्वकामना की सिद्धि हेतु भगवान परशुराम के गायत्री मंत्रों का जाप करना चाहिए। मंत्र इस प्रकार हैं-
1. 'ॐ ब्रह्मक्षत्राय विद्महे क्षत्रियान्ताय धीमहि तन्नो राम: प्रचोदयात्।।'
2. 'ॐ जामदग्न्याय विद्महे महावीराय धीमहि तन्नो परशुराम: प्रचोदयात्।।'
3. 'ॐ रां रां ॐ रां रां परशुहस्ताय नम:।।'
परशुराम जयन्ती कब और क्यों मनाई जाती है ?
परशुराम जयन्ती को भगवान विष्णु के छठे अवतार के रूप में मनाया जाता है। यह वैशाख के महीने में शुक्ल पक्ष तृतीया के दौरान पड़ता है जिसका अर्थ है शुक्ल पक्ष का तीसरा दिन। यह माना जाता है कि परशुराम का जन्म प्रदोष काल के दौरान हुआ था और इसीलिए जिस दिन प्रदोष काल के दौरान तृतीया पड़ती है, उसे परशुराम जयंती समारोह के लिए माना जाता है।
भगवान् परशुराम जयन्ती पूरे भारत में हर्षोउल्लास के साथ मनाई जाती है। इस दिन हवन, पूजन और भंडारों के साथ एक भगवान परशुराम शोभा यात्रा, जागरण इत्यादि का आयोजन किया जाता है। 2021 में अक्षय तृतीया परशुराम जयन्ती 14 मई 2021 को 05:40 AM से परशुराम जयन्ती 15 मई 2021 08:00 AM तक है । और जितने भी जनमोत्स्व मनाये जाते है वो ज्यादातर 2 दिन के होते है । भगवान् परशुराम का जन्म शाम को 6 बजे से 9 बजे के बीच दिन-रात्रि के प्रथम प्रहर में हुआ था । और अक्षय तृतीया 2 दिनों में आ रही है तो कही परशुराम जयंती 14 मई को मनाई जा रही है कहीं 15 मई को ।
भगवान विष्णु के छठे अवतार का उद्देश्य पापी, विनाशकारी और अधार्मिक राजाओं को भगाने के द्वारा पृथ्वी के भार को दूर करना है जिन्होंने इसके संसाधनों को नष्ट कर दिया और राजाओं के रूप में अपने कर्तव्यों की उपेक्षा की।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, प्राचीन समय में भृगुवंशी ब्राह्मण हैहय वंशीय क्षत्रियों के राजपुरोहित थे। इसी ब्राह्मण कुल में महर्षि जमदग्नि का जन्म हुआ। उनका विवाह इक्ष्वाकु वंश की कन्या रेणुका से हुआ था। और महर्षि जमदग्नि और माता रेणुका के भगवान् श्री परशुराम पुत्र हुए ।
अन्य सभी अवतारों के विपरीत हिंदू मान्यता के अनुसार परशुराम अभी भी पृथ्वी पर रहते हैं। हिमाचल के सिरमौर जनपद में रेणुका जी एक जगह है, यहां पर 1.5 किलोमीटर लम्बी प्राकृतक झील है, मान्यताओं के अनुसार यह वही झील है जिसमें भगवान परशुराम जी की माता ने असुरों से रक्षा के लिए अपनी देह त्यागी थी । जब झील ने उनकी देह को ढकने का प्रयास किया तो उसका आकार महिला की देह जैसा हो गया जो आज भी है | बाद में असुरों के वध के बाद जब भगवान् परशुराम जी यहां आये तो अपने योगबल से अपने माता पिता को जीवित कर दिया । इससे प्रसन्न होकर माता रेणुका ने भगवान् परशुराम को वचन दिया की हर साल दिवाली के 10 दिन बाद या कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी को मैं मिलने आउंगी | तब से आज तक हर साल इस दिन यहाँ मेला लगता है और माँ रेणुका से मिलने भगवान् परशुराम हर साल यहाँ से लगभग 10 किलोमीटर दूर जम्मू नामक एक गांव से श्री रेणुका जी आते है ।
कल्कि पुराण में कहा गया है कि भगवान विष्णु के 10 वें और अंतिम अवतार श्री कल्कि के युद्ध विद्या के गुरु होंगे। यह पहली बार नहीं है कि भगवान विष्णु के 6 वें अवतार एक और अवतार से मिलेंगे। रामायण के अनुसार, परशुराम सीता और भगवान राम के स्वयंवर में आए और भगवान विष्णु के 7 वें अवतार से मिले।
भगवान श्री परशुराम की सेवा-साधना करने वाले भक्त भूमि, दारिद्रय से मुक्ति, धन, ज्ञान, अभीष्ट सिद्धि, संतान प्राप्ति, शत्रु नाश, विवाह, वर्षा, वाक् सिद्धि इत्यादि पाते हैं। भगवान परशुराम महामारी से रक्षा कर सकते हैं। भगवान श्री परशुराम भगवान विष्णु के दशावतार में छठे अवतार माने जाते हैं। भगवान शिव शंकर ने उन्हें मृत्युलोक के कल्याणार्थ परशु अस्त्र प्रदान किया जिसके कारण भगवान परशुराम कहलाए। शस्त्र और शास्त्र के ज्ञाता सिर्फ और सिर्फ भगवान परशुराम ही माने जाते हैं। क्यूंकि भगवान् परशुराम ब्राह्मण कुल में पैदा हुए और असुरों के सर्वनाश के लिए भगवान् शिव से शस्त्र विद्या ली।
भगवान परशुराम परम शिवभक्त थे। क्रोध और दानशीलता में भगवान परशुराम की कोई बराबरी नहीं है। उन्होंने सहस्रार्जुन की राक्षस लीला समाप्त कर दी। और ब्राह्मण होने के कारण प्रायश्चित के लिए सभी तीर्थों में तपस्या की। श्री गणेशजी को एकदंत करने वाले भी परशुराम थे। पृथ्वी को 17 बार क्षत्रियों से विहीन करने वाले भगवान श्री परशुराम ही थे। उनकी दानशीलता ऐसी थी कि एक बार समस्त पृथ्वी ही ऋषि कश्यप को दान कर दी। उनके शिष्य बनाने का लाभ दानवीर कर्ण ही ले पाए जिसे उन्होंने ब्रह्मास्त्र की दीक्षा दी।