श्री अमृतसर के प्रसिद्ध स्वर्ण मंदिर, “यानी गोल्डन टेम्पल” से लगभग डेढ़ किलोमीटर दूर स्थित एक छोटे से बाग़ यानी जलियांवाला बाग में 13 अप्रैल, 1919 को “रौलट एक्ट – Rowlatt Act” का विरोध करने के लिए एक शांतिपूर्ण सभा हो रही थी और उस दिन बैसाखी भी थी। जलियांवाला बाग में कई सालों से बैसाखी वाले दिन बैसाखी के उपलक्ष में मेला भी लगता था, जिसमें शामिल होने के लिए उस दिन वहां हजारों लोग पहुंचे थे।
हकीकत में Jallianwala bagh Hatyakand में लगभग एक हज़ार से ज़्यादा लोग मारे गए थे, और 1,500 के आसपास ज़्यादा घायल हुए थे। बैसाखी वाले दिन इस दर्दनाक, दिल दहला देने वाली घटना को एक अंग्रेज़ अफसर “जनरल डायर” (Reginald Edward Harry Dyer) ने अपनी सशस्त्र 90 सैनिको की एक टुकड़ी के साथ अंजाम दिया। इस दिन जलियांवाला बाग में पुरुष, महिलायें और बच्चे वार्षिक बैसाखी समारोह में भाग लेने के लिए इकट्ठे हुए थे, जो पंजाबियों का धार्मिक और सांस्कृतिक त्योहार दोनों हैं।
इस घटना में सबसे बुरी बात यह थी कि यह बाग़ एक ऊँची दिवार से घिरा हुआ था और इस बाग़ से बहार जाने के सारे रास्तों पर खड़े होकर सिपाही अंधादुंध गोलीबारी कर रहे थे। जब लोग बहार नहीं जा पा रहे थे तो वहां भगदड़ जैसा माहौल बन गया और काफी सारे लोग तो भगदड़ में पैरों तले रौंदे गए और मारे गए
इस निर्मम हत्याकांड के बाद से ही ब्रिटिश हुकूमत के अंत की शुरुआत हो गयी थी। इसी के बाद देश को ऊधम सिंह और भगत सिंह जैसा क्रांतिकारी मिले और देशभर के युवाओं के दिलों में देशभक्ति की लहर दौड़ गई।